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मूलों में जन्म लेने वाले बच्चों का भविष्य
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ज्योतिष की सटीक व्याख्या और फल के लिए हमेशा नक्षत्रों पर विचार किया जाता है. नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और उनके अलग अलग फल भी होते हैं. कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं . उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र , सतैसा या गण्डात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो विशेष तरह के प्रभाव देखने में आते हैं. इन नक्षत्रों में जन्म लेने का असर सीधा बच्चे के स्वभाव और स्वास्थ्य पर पड़ता है.

ज्योतिष की सटीक व्याख्या और फल के लिए हमेशा नक्षत्रों पर विचार किया जाता है. नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और उनके अलग अलग फल भी होते हैं. कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं . उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र , सतैसा या गण्डात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो विशेष तरह के प्रभाव देखने में आते हैं. इन नक्षत्रों में जन्म लेने का असर सीधा बच्चे के स्वभाव और स्वास्थ्य पर पड़ता है.

कौन-कौन से होते हैं मूल नक्षत्र और और उनका प्रभाव क्या है ?

  • मूल ,ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र हैं और अश्विनी,रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं.!
  • इस प्रकार कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र हैं- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मघा और रेवती.!
  • जब बालक का जन्म इनमे होता है तो बालक के स्वास्थ्य की स्थिति संवेदनशील हो जाती है,!
  • माना जाता है कि पिता को नवजात का मुख नहीं देखना चाहिए जब तक इसकी शांति न करा ली जाए.!
  • वास्तविकता में केवल नक्षत्रों के आधार पर ही सारा निर्णय नहीं लेना चाहिए !
  • पूरी तरह से कुंडली देखकर ही इसका निर्णय करें.!

अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो किन बातों का ख्याल रखें ?

  • सबसे पहले ये देखें की बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है और किस कारण से उसको समस्या हो सकती है.!
  • पिता और माता की कुंडली जरूर देखें कि उनका और उनपर इस नवजात के जन्म का क्या प्रभाव है..?
  • अगर बच्चे का बृहस्पति और चन्द्रमा मजबूत है तो बच्चे के स्वास्थ्य का संकट समाप्त हो जाता है.!
  • इसी प्रकार से अगर पिता या परिजनों के ग्रह ठीक हैं तो भी चिंता नहीं करनी चाहिए.!
  • कोई भी समस्या संस्करों का खेल है , किसी बच्चे का इसमें कोई दोष नहीं होता.!
  • वैसे भी 8 वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का प्रभाव विशेष नहीं रहता !

क्या करें उपाय अगर मूल नक्षत्र का दुष्प्रभाव तुरंत पड़ने की सम्भावना हो ?

  • जन्म के सत्ताईस दिन बाद वही नक्षत्र आने पर नक्षत्र (मूल) शांति करा लें.!
  • बच्चे के आठ वर्ष तक हो जाने तक नित्य प्रातः माता-पिता “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें.
  • अगर उम्र 8 वर्ष से ज्यादा हो तो मूल नक्षत्र की शांति की आवश्यकता नहीं होती.!
  • क्योंकि ज्यादा संकट आम तौर पर 8 वर्ष तक रहता है !
  • अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए.!

अगर बच्चे के स्वभाव पर मूल नक्षत्र का असर हो तो क्या उपाय करना चाहिए ?

  • अगर बच्चे की राशी मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे को हनुमान जी की उपासना करवाएं !
  • अगर राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं.!
  • अगर बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री उपासना अनुकूल होगी.!
  • अगर बच्चे की राशी कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिव जी की उपासना उत्तम रहेगी.!
  • वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर भी हनुमान जी की उपासना करवाएं.;
  • अगर मीन राशि और रेवती नक्षत्र है तो गणेश जी की उपासना से लाभ होगा !

नोट:– गंड मूल किसी विद्वान ज्योतिषी या पंडित के माध्यम से हर हालत में करानी चाहिए वरना इसका दुष्परिणाम व्यक्ति और उसके माता-पिता को काफी समय तक भुगतना पड़ता है