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भीष्म पंचक व्रत विधि भीष्म पंचक व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक मनाया जाता है जो निःसंतान व्यक्ति पत्नी सहित इस प्रकार का व्रत कर सकता है। मान्यता इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होती हैl इसके अलावा जो समाज में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं तथा वैकुण्ठ पाना चाहते हैं या इस लोक में सुख चाहते हैं उन्हें भी इस व्रत को करना चाहिए। इस व्रत के विषय में एक पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार से है – महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह बाण शय्या पर सोये हुए थे तब उन्होंने राजधर्म, मोक्षधर्म तथा दानधर्म का वर्णन किया, जिसे कृष्ण सहित सभी पाण्डवों ने सुना. उसे सुनकर श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर कहा – “हे भीष्म! आप धन्य हैं, आपने हम से बहुत ही अच्छी प्रकार से धर्म का वर्णन किया है. आपने कार्तिक महीने की एकादशी के दिन जल की याचना की है और अर्जुन ने पृथ्वी को बाण से वेधकर आपकी तृप्ति के लिए गंगाजल प्रस्तुत किया है. जिससे आपके तन, मन तथा प्राण सन्तुष्ट हो गये. अत: आज से लेकर पूर्णिमा तक सब लोग आपको अर्घ्यदान से तृप्त करें तथा मुझको प्रसन्न करने वाले प्रतिवर्ष इस भीष्म पंचक व्रत का पालन करें. अत: प्रतिवर्ष भीष्म तर्पण करना चाहिए. यह सभी वर्णों के लिए श्रेयस्कर है. भीष्म तर्पण के लिए निम्न मन्त्र सत्यभाव से पढ़कर तर्पण करना चाहिए – तर्पण मंत्र – सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने । भीष्मायेतद् ददाम्यर्घ्यमाजन्म ब्रह्मचारिणे ।। अर्थात – आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले परम पवित्र सत्यव्रत पारायण गंगानन्दन महात्मा भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ. जो मनुष्य निम्नलिखित मंत्र द्वारा भीष्म जी के लिए अर्घ्यदान करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. अर्घ्य मंत्र – वैयाघ्रपद गोत्राय सांकृत्यप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।। वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अर्घ्यं ददानि भीष्माय आजन्म ब्रह्मचारिणे ।। अर्थात – जिनका गोत्र व्याघ्रपद और सांकृतप्रवर है, उन पुत्र रहित भीष्म जी को मैं जल देता हूँ. वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ. जो भी मनुष्य अपनी स्त्री सहित पुत्र की कामना करते हुए भीष्म पंचक व्रत का पालन करता हुआ तर्पण और अर्घ्य देता है. उसे एक वर्ष के अन्दर ही पुत्र की प्राप्ति होती है. इस व्रत के प्रभाव से महापातकों का नाश होता है. अर्घ्य देने के बाद पंचगव्य, सुगन्धित चन्दन के जल, उत्तम गन्ध व कुंकुम द्वारा सभी पापों को हरने वाले श्री हरि की पूजा करें. भगवान के समीप पाँच दिनों तक अखण्ड दीप जलाएँ. भगवान श्री हरि को उत्तम नैवेद्य अर्पित करें. पूजा-अर्चना और ध्यान नमस्कार करें. उसके बाद “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करें. प्रतिदिन सुबह तथा शाम दोनों समय सन्ध्यावन्दन करके ऊपर लिखे मन्त्र का 108 बार जाप कर भूमि पर सोएं. व्रत करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना अति उत्तम है. शाकाहारी भोजन अथवा मुनियों से प्राप्त भोजन द्वारा निर्वाह करें और ज्यादा से ज्यादा समय विष्णु पूजन में व्यतीत करें. विधवा स्त्रियों को मोक्ष की कामना से यह व्रत करना चाहिए. पूर्णमासी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएँ तथा बछड़े सहित गौ दान करें. इस प्रकार पूर्ण विधि के साथ व्रत का समापन करें. पाँच दिनों का यह भीष्म पंचक व्रत-एकादशी से पूर्णिमा तक किया जाता है. इस व्रत में अन्न का निषेध है अर्थात इन पाँच दिनों में अन्न नहीं खाना चाहिए. इस व्रत को विधिपूर्वक पूर्ण करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं. भीष्म पंचक व्रत की महिमा पद्म पुराण में श्री भीष्म पंचक व्रत की महिमा का वर्णन इस प्रकार से है – पाँच दिनों तक अर्थात एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान हरि की प्रतिमा के सामने अखण्ड दीपक जलाएँ. प्रतिदिन “ऊँ नमो वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें. प्रतिदिन संध्या के समय संध्या वन्दना कर उपरोक्त मंत्र का 108 बार जाप कर भूमि पर शयन करें. एकादशी से भगवान विष्णु का पूजन कर उपवास रखें. उसके बाद द्वादशी के दिन व्रतधारी मनुष्य भूमि पर बैठकर मन्त्रोचारण के साथ गोमूत्र का सेवन करें. त्रयोदशी को केवल दूध ग्रहण करें. चतुर्दशी को दही का सेवन करें. इस प्रकार चार दिनों तक व्रत करें, जिससे शरीर की शुद्धि होती है. पांचवें दिन स्नान कर भगवान केशव की पूजा करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा दें. शाकाहारी भोजन करें तथा हर पल श्री हरि का पूजन करें. उसके बाद पंचगव्य खाकर अन्न ग्रहण करें. विधिपूर्वक इस व्रत को पूरा करने से मनुष्य को शास्त्रों में लिखे फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. महापातकों का नाश होता है तथा मनुष्य परमपद को प्राप्त करता है, ऎसा पद्म पुराण में कहा गया है.

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