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*सोते विष्णुजी के आह्वान बिना नहीं हो सकता शुभ संस्कार* हिंदू धर्म में चातुर्मास के आरंभ के साथ ही शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है. हर वर्ष चतुर्मास, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष एकादशी से शुरू होते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि तक रहते हैं. इस साल चातुर्मास 20 जुलाई 2021 से शुरू होकर 14 नवंबर तक चलेंगे. पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में जिक्र है कि इन चार महीनों के दौरन श्रीहरिविष्णु पाताल जाकर निद्रा लेते हैं. चातुर्मास का आरंभ देवशयनी एकादशी और समापन देवउठनी एकादशी से होती है. हिंदू धर्म में चूंकि विष्णु पालनहार माने गए हैं और चार माह शयन करते हैं। इस दौरान मांगलिक कार्य विवाह, मुंडन, जनेऊ आदि नहीं कराया जाता, क्योंकि मांगलिक कार्यों में भगवान विष्णु का आवाहन किया जाता है, मगर पाताल में शयन करने के कारण वे उपस्थित नहीं हो पाते, ऐसे में किसी भी मांगलिक कार्य का फल नहीं मिल पाता है. भक्त की खुशी के लिए सोते हैं भगवान तीनों लोकों की रक्षा के लिए विष्णुजी ने वामन अवतार लिया था. राजा बाली को खुश होकर भगवान ने उसे पाताल लोक में रहने का वरदान दिया. भक्त को दिए वचन और तीनों लोकों की जिम्मेदारी को पूरा करने योग निंद्रा में विष्णु भगवान चार्तुमास में चले जाते हैं. उनकी लम्बी निंद्रा का कारण भी भक्त राजा बाली से स्नेह है. विष्णु की इस निंद्रा के पीछे भी भक्त को प्रसन्न करना है. शास्त्रों के अनुसार राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था तो इंद्र से परेशान हो गए. घबराए इंद्र और तमाम देवताओं ने विष्णुजी से गुहार लगाई. तब भगवान ने वामन अवतार लिया. अपने इस अवतार में विष्णुजी ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी. दानी राजा ने वामन को भूमि देने का वचन दे दिया. विष्णुजी ने दो पग में धरती और आकाश नाप लिए और तीसरे पग को रखने की बारी में राजा बाली ने मस्तक आगे कर दिया, जिससे विष्णुजी के पैर सिर पर रखते ही वह पाताल में जा धंसा. राजा की भक्ति और दान वीरता से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने वरदान मांगने को कहा. राजा ने भगवान से उनका साथ मांगा और प्रभु से पाताल लोक चलने का आग्रह किया। भगवान भक्त इच्छा से बंधकर गए। इससे माता लक्ष्मी और देवताओं दोनों की चिंता बढ़ गई. विष्णुजी को पाताल से मुक्ति के लिए माता लक्ष्मी ने युक्ति लगाई. उन्होंने बलि को राखी बांधकर उपहार में विष्णुजी को पाताल से मुक्त करने का वचन ले लिया. भगवान विष्णु भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने वरदान दिया कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे. इसी कारण हर वर्ष चार महीने विष्णु भगवान योग निंद्रा में रहते हैं।