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राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत

महालक्ष्मी व्रत को राधा अष्टमी भी कहा जाता है. इसी दिन से इस व्रत की शुरुवात होती है और लगातार 16 दिनो तक महिलाए इस व्रत का विधान करती है। जैसा की नाम से ही स्पष्ट है इस दिन देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है।

 

 

राधा अष्टमी या महालक्ष्मी व्रत विशेषकर शादीशुदा महिलाओ द्वारा अपने परिवार को धन्य धान से परिपूर्ण करने की मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। राधा अष्टमी या महालक्ष्मी व्रत को करने का एक कारण यह भी है कि महिलाए अपने परिवार को दी कृपा के लिए धन्यवाद माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को करना चाहती है।

 

 

महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधी (Mahalaxmi vrat Pooja Vidhi):

 

 

इस व्रत को करते वक़्त सर्वप्रथम व्रत के दिन सूर्योदय के समय स्नान आदि करके पूजा का संकल्प किया जाता है। पूजन के संकल्प और स्नान के पहले इस दिन दूर्वा को अपने शरीर पर घिसा जाता है।

 

संकल्प लेते समय व्रत करने वाली महिला अपने मन मे यह निश्चय करती है कि माता लक्ष्मी मै आपका यह व्रत पूरे विधी विधान से पूरा करूंगी। मै इस व्रत के हर नियम का पालन करूंगी। वो कहती है कि माता लक्ष्मी मुझ पर कृपा करे, कि मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न के पूर्ण हो जाए। इस संकल्प के बाद एक सफेद डोरे मे 16 गठान लगाकर उसे हल्दी से पीला किया जाता है और फिर उसे व्रत करने वाली महिला द्वारा अपनी कलाई पर बांधा जाता है।

 

अब पूजन के वक़्त एक पटे पर रेशमी कपड़ा बिछाया जाता है। इस वस्त्र पर लाल रंग से सजी लक्ष्मी माता की तस्वीर और गणेश जी की मूर्ति रखी जाती है । कुछ लोग इस दिन मिट्टी से बने हाथी की पूजा भी करते है। अब मूर्ति के सामने पानी से भरा कलश स्थापित करते है और इस कलश पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करते है। अब इसकी पूजा सुबह और शाम के वक़्त की जाती है। और मेवे तथा मिठाई का भोग लगाया जाता है।

 

पूजन के प्रथम दिन लाल नाड़े मे 16 गाठ लगाकर इसे घर के हर सदस्य के हाथ मे बांधा जाता है और पूजन के बाद इसे लक्ष्मी जी के चरणों मे चढ़ाया जाता है। व्रत के बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और दान दक्षिणा दी जाती है। इस सब के बाद लक्ष्मी जी से व्रत के फल प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।

 

महालक्ष्मी व्रत की कथा (Mahalaxmi vrat Katha):

 

इस व्रत के संदर्भ मे कई कथाये प्रचलित है यहा हम आपको 2 कथाये बता रहे है।

 

प्रथम कथा – बहुत पुरानी बात है। एक गाव मे एक ब्राह्मण रहता था। वह ब्राह्मण नियमानुसार भगवान विष्णु का पूजन प्रतिदिन करता था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिये और इच्छा अनुसार वरदान देने का वचन दिया। ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी का वास अपने घर मे होने का वरदान मांगा। ब्राह्मण के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने कहा यहा मंदिर मे रोज एक स्त्री आती है और वह यहा गोबर के उपले थापति है। वही माता लक्ष्मी है। तुम उन्हे अपने घर मे आमंत्रित करो। देवी लक्ष्मी के चरण तुम्हारे घर मे पड़ने से तुम्हारा घर धन धान्य से भर जाएगा। ऐसा कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए। अब दूसरे दिन सुबह से ही ब्राह्मण देवी लक्ष्मी के इंतजार मे मंदिर के सामने बैठ गया। जब उसने लक्ष्मी जी को गोबर के उपले थापते हुये देखा तो उसने उन्हे अपने घर पधारने का आग्रह किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गयी की यह बात ब्राह्मण को विष्णु जी ने ही कही है। तो उन्होने ब्राह्मण को महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी । लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा कि तुम 16 दिनो तक महालक्ष्मी व्रत करो और व्रत के आखिरी दिन चंद्रमा का पूजन करके अर्ध्य देने से तुम्हारा व्रत पूर्ण होगा।

 

 

द्वतीय कथा – एक बार हस्तिनापूर मे महालक्ष्मी व्रत के दिन गांधारी ने नगर की सारी स्त्रियो को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु उसने कुंती को आमंत्रण नहीं दिया। गांधारी के सभी पुत्रो ने पूजन के लिए अपनी माता को मिट्टी लाकर दी और इसी मिट्टी से एक विशाल हाथी का निर्माण किया गया और उसे महल के बीच मे स्थापित किया गया। नगर की सारी स्त्रीया जब पूजन के लिए जाने लगी, तो कुंती उदास हो गयी। जब कुंती के पुत्रो ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने सारी बात बताई। इस पर अर्जुन ने कहा माता आप पूजन की तैयारी कीजिये मै आपके लिए हाथी लेकर आता हूँ। ऐसा कहकर अर्जुन इन्द्र के पास गया और अपनी माता के पूजन के लिए ऐरावत को ले आया। इसके बाद कुंती ने सारे विधी विधान से पूजन किया और जब नगर की अन्य स्त्रियो को पता चला, कि कुंती के यहा इन्द्र के ऐरावत आया है| तो वे भी पूजन के लिए उमड़ पड़ी और सभी ने सविधि पूजन सम्पन्न किया।

 

ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत की कहानी सोलह बार कही जाती है। और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है

 

महालक्ष्मी व्रत उद्यापन विधी (Mahalaxmi vrat udMahalaxmi vrat udyapan Vidhi):

 

व्रत मे उद्यापन के दिन एक सुपड़ा लेते है। इस सुपड़े मे सोलह श्रंगार के सामान लेकर इसे दूसरे सुपड़े से ढक देते है। अब 16 दिये प्रज्वलित करते है। पूजन के बाद इसे देवी जी को स्पर्श कराकर दान करते है।

 

व्रत के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देते है और लक्ष्मी जी को अपने घर पधारने का आमंत्रण देते है।

 

माता लक्ष्मी को भोग लगाते समय ध्यान रहे माता के भोजन मे लहसुन प्याज से बना भोजन वर्जित है। माता के साथ साथ उन सभी को भी भोजन दे जिन्होने व्रत किया है। भोजन मे पूड़ी सब्जी खीर रायता आदि विशेष रूप से होता है।

 

पूजन के बाद भगवान को भोग लगी हुई थाली गाय को खिलाते है और माता को चढ़ा हुआ श्रंगार का सामान दान करते है।

 

महालक्ष्मी व्रत कब किया जाता हैव्रत की तिथि और शुभ मुहूर्तर 2021 की 13 तारीख से महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत हो रही है. दिन सोमवार का होगा. दोपहर 03 बजकर 10 मिनट से व्रत रखने का शुभ समय माना जा रहा है. ये व्रत सोलह दिन चल कर 28 सितंबर 2021 को खत्म होगा.