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यदि गुलिक लग्न में है तो जातक/जातिका क्रूर किंतु भीरु स्वभाव, चोर, विनय रहित, इकहरा बदन (रुग्यता को छोड़कर), नेत्र विकार, अल्प संतति, अल्प बुद्धि, अल्पायु, वेद शास्त्र विरुद्ध, क्रोधी व मूर्ख होता है।

– यदि गुलिक दूसरे भाव में है तो कलही, धन धान्य की कमी रहे, परदेश में अधिक रहे। बात का पाबंद न हो तथा वाद विवाद में अक्षम रहें।

– यदि गुलिक तीसरे भाव में स्थित है तो जातक/जातिका क्रोधी व लोभी होंगे। अकेला रहना पसंद करे, अधिक मद हो या मद प्रिय हों, भाई-बहनों का सुख कम रहे, लेकिन स्वयं भयहीन, शोकहीन होकर ठाठ-बाट से जीवन यापन करे।

– चतुर्थ भाव में यदि गुलिक है तो भू-भवन माता के सुख में कमी हो तथा सवारी का सुख कम मिले।

– यदि गुलिक पंचम भाव में है तो दुष्ट बुद्धि हो, विचारों में दृढता न हो और अल्प संतति वाला जातक हो।

– छठे भाव का गुलिक भूत विद्या का शौकीन, डाकिनी-शाकिनी, यक्षिणी व भूत प्रेतादि का सेवन करे या स्वयं ग्रस्त हों। शत्रुओं का दमन करनेवाला, श्रेष्ठ पुत्रवाला होता है।

– यदि गुलिक सप्तम भाव में है तो जातक/जातिका कलही, लौक द्वैषी, अल्पबुद्धि, क्रोधी, कृतघ्न व अनेक मित्र/उपभार्याएं हो सकती है। – अष्टम भाव का गुलिक छोटा कद, चेहरे व नेत्रों में विकलता या तो शारीरिक कमी हो या वाकशक्ति में कमी हो।

– यदि गुलिक नवें भाव में हो तो धर्म, गुरु, पिता व पुत्रादि से विहीन हो सकता है।

– यदि दशम स्थान में गुलिक स्थित है तो कृपण, अपने बड़ों का अनादर करे व शुभ कार्य त्याग दे।

– यदि एकादश लाभ स्थान में गुलिक है तो जातक/जातिका सुखी, तेजस्वी, कांतिवान हों तथा पुत्र सुख प्राप्ति भी हो।

– द्वादश भाव का गुलिक विषयी, दीन व व्यर्थ का व्यय करने का गुण बढ़ाता है।

गुलिक का अन्य ग्रहों की युति में प्रभाव सूर्य पिता का कारक है यदि सूर्य के साथ गुलिक हो तो पिता को अरिष्ट करे या अल्प पितृ सुख हो या पितृ दोष हो सकता है। चंद्रमा भातृकारक है, यदि चंद्रमा के साथ गुलिक हो तो माता को कष्ट दे। मंगल भ्रातृकारक है अतः मंगल के साथ यदि गुलिक हो तो भाई को कष्ट दे या भाई वियोग भी करा सकता


गुलिक उपग्रह का भावानुसार फल:

– यदि गुलिक लग्न में है तो जातक/जातिका क्रूर किंतु भीरु स्वभाव, चोर, विनय रहित, इकहरा बदन (रुग्यता को छोड़कर), नेत्र विकार, अल्प संतति, अल्प बुद्धि, अल्पायु, वेद शास्त्र विरुद्ध, क्रोधी व मूर्ख होता है।

– यदि गुलिक दूसरे भाव में है तो कलही, धन धान्य की कमी रहे, परदेश में अधिक रहे। बात का पाबंद न हो तथा वाद विवाद में अक्षम रहें।

– यदि गुलिक तीसरे भाव में स्थित है तो जातक/जातिका क्रोधी व लोभी होंगे। अकेला रहना पसंद करे, अधिक मद हो या मद प्रिय हों, भाई-बहनों का सुख कम रहे, लेकिन स्वयं भयहीन, शोकहीन होकर ठाठ-बाट से जीवन यापन करे।

– चतुर्थ भाव में यदि गुलिक है तो भू-भवन माता के सुख में कमी हो तथा सवारी का सुख कम मिले।

– यदि गुलिक पंचम भाव में है तो दुष्ट बुद्धि हो, विचारों में दृढता न हो और अल्प संतति वाला जातक हो।

– छठे भाव का गुलिक भूत विद्या का शौकीन, डाकिनी-शाकिनी, यक्षिणी व भूत प्रेतादि का सेवन करे या स्वयं ग्रस्त हों। शत्रुओं का दमन करनेवाला, श्रेष्ठ पुत्रवाला होता है।

– यदि गुलिक सप्तम भाव में है तो जातक/जातिका कलही, लौक द्वैषी, अल्पबुद्धि, क्रोधी, कृतघ्न व अनेक मित्र/उपभार्याएं हो सकती है। – अष्टम भाव का गुलिक छोटा कद, चेहरे व नेत्रों में विकलता या तो शारीरिक कमी हो या वाकशक्ति में कमी हो।

– यदि गुलिक नवें भाव में हो तो धर्म, गुरु, पिता व पुत्रादि से विहीन हो सकता है।

– यदि दशम स्थान में गुलिक स्थित है तो कृपण, अपने बड़ों का अनादर करे व शुभ कार्य त्याग दे।

– यदि एकादश लाभ स्थान में गुलिक है तो जातक/जातिका सुखी, तेजस्वी, कांतिवान हों तथा पुत्र सुख प्राप्ति भी हो।

– द्वादश भाव का गुलिक विषयी, दीन व व्यर्थ का व्यय करने का गुण बढ़ाता है।

गुलिक का अन्य ग्रहों की युति में प्रभाव सूर्य पिता का कारक है यदि सूर्य के साथ गुलिक हो तो पिता को अरिष्ट करे या अल्प पितृ सुख हो या पितृ दोष हो सकता है। चंद्रमा भातृकारक है, यदि चंद्रमा के साथ गुलिक हो तो माता को कष्ट दे। मंगल भ्रातृकारक है अतः मंगल के साथ यदि गुलिक हो तो भाई को कष्ट दे या भाई वियोग भी करा सकता है।

बुध के साथ गुलिक होने से बुद्धि विभ्रम करे। शिरो रोग आदि दे। गुरु धर्म कारक है अतः गुरु के साथ गुलिक होने से पाखंडी हो जाय। शुक्र स्त्रीकारक है अतः गुलिक के साथ शुक्र होने से स्त्री सुख कम होता है। यदि दोनों सप्तम भाव में हों तो ऐसा गुलिक अनेक नीच स्त्रियों के साथ समागम करता है। यदि गुलिक शनि के साथ हो तो व्याधियों का घर बने और अल्पायु हो। यदि गुलिक राहु के साथ हो तो विष रोगी हो या विष से भय हो, सर्प दंश भी हो सकता है।

यदि गुलिक के साथ हो तो अग्नि, बिजली, तेजाब आदि का भय बन सकता है। त्याज्यकाल में गुलिक: यदि गुलिक के त्याज्य काल में जतिका/जातक का जन्म हो तो राजघराने में जन्म लेने वाला भी दरिद्री होता है, भीख मांगकर गुजारा करे। विद्वानों ने त्याज्यकाल का वर्णन निम्न प्रकार से किया है, यथा: नक्षत्र घटी 1. अश्विनी 50.54 2. भरणी 24.28 3. कृत्तिका 30.34 4. रोहिणी 40.44 5. मृगशिरा 14.18 6. आद्र्रा 21.25 7. पुनर्वसु 30.54 8. पुष्य 20.24 9. आश्लेषा 32.36 10. मघा 30.34 11. पूर्वाफाल्गुनी 20.24 12. उत्तराफाल्गुनी 18.22 13. हस्त 21.25 14. चित्रा 20.24 15. स्वाति 14.18 16. विशाखा 14.18 17. अनुराधा 10.14 18. ज्येष्ठा 14.18 19. मूल 56.60 20. पूर्वाषाढ़ा 24.28 21. उत्तराषाढ़ा 20.24 22. श्रवण 10.14 23. धनिष्ठा 10.14 24. शतभिषा 18.22 25. पूर्वाभाद्रपद 16.20 26. उत्तराभाद्रपद 24.28 27. रेवती 30.34 तात्पर्य है कि हर नक्षत्र में केवल 4 घटी का समय गुलिक का ‘त्याज्य काल’ माना गया है।

शास्त्रीय विवेचनानुसार गुलिक को हर भाव में प्रायः हर ग्रह के साथ अशुभ बताया गया है। लेकिन पराशर जी के अनुसार पुस्तकों में आया है कि – गुलिक भवन नाथे केन्द्र गे वा त्रिकोये बलिनि निजगृहस्थे स्वोच्चमित्रस्थिते वा। रथ गज तुरगाणां नायको भारतुल्यो महित पृथुयशास्स्यान्मेदिनी मण्डलेन्द्रः।। अर्थात् जिस घर में गुलिक स्थित है

क्योंकि हमने दशमलव के बाद चार अंकों तक ही लिया है पूरा नहीं। अन्यथा सूर्य का पूर्ण भोगांश ही आएगा। घमन्तु या संचरणीय ग्रहों का स्पष्ट करना उपर्युक्त उदाहरण के अनुसार दिनमान दिया 25 घटी 45 पल। समय दिया हुआ है पूर्वान्ह 8घं. 20मि. 31से.। इससे पूर्व हम इसे सिद्धांत की कसौटी पर करें। एक बात स्पष्ट करने की है कि यदि दिन में जन्म है तो दिनमान लिया जाता है और यदि रात्रि में जन्म है तो रात्रिमान से गणना की जाती है। लेकिन एक बात दृष्टव्य है कि यदि रात्रि में या संध्या काल में जन्म है तो जिस वार को जन्म है तो उससे पांचवें दिन का प्रथम उपग्रह का समय गिना जाएगा। जैसे उदाहरण में दिन दिया है रविवार। यदि रात में जन्म है तो पांचवा दिन रविवार से बृहस्पतिवार का दिन पड़ा। बृहस्पति का उपग्रह यमकारक या यमघंटक है इसी से गणना की जाएगी और दिन के जन्म में उसी दिन के उपग्रह से। दिन व उपग्रह दिन उपग्रह स्वामी ग्रह रविवार काल सोमवार परिधि चंद्र मंगलवार धूम मंगल बुधवार अर्द्धयम या अर्द्धप्रहार बुध बृहस्पतिवार यमकण्टक बृहस्पति शुक्रवार कोदण्ड या इन्द्रधनुष शुक्र शनिवार गुलिक शनि अब उदाहरण के अनुसार गणित करते हैं:



– यदि गुलिक लग्न में है तो जातक/जातिका क्रूर किंतु भीरु स्वभाव, चोर, विनय रहित, इकहरा बदन (रुग्यता को छोड़कर), नेत्र विकार, अल्प संतति, अल्प बुद्धि, अल्पायु, वेद शास्त्र विरुद्ध, क्रोधी व मूर्ख होता है।

– यदि गुलिक दूसरे भाव में है तो कलही, धन धान्य की कमी रहे, परदेश में अधिक रहे। बात का पाबंद न हो तथा वाद विवाद में अक्षम रहें।

– यदि गुलिक तीसरे भाव में स्थित है तो जातक/जातिका क्रोधी व लोभी होंगे। अकेला रहना पसंद करे, अधिक मद हो या मद प्रिय हों, भाई-बहनों का सुख कम रहे, लेकिन स्वयं भयहीन, शोकहीन होकर ठाठ-बाट से जीवन यापन करे।

– चतुर्थ भाव में यदि गुलिक है तो भू-भवन माता के सुख में कमी हो तथा सवारी का सुख कम मिले।

– यदि गुलिक पंचम भाव में है तो दुष्ट बुद्धि हो, विचारों में दृढता न हो और अल्प संतति वाला जातक हो।

– छठे भाव का गुलिक भूत विद्या का शौकीन, डाकिनी-शाकिनी, यक्षिणी व भूत प्रेतादि का सेवन करे या स्वयं ग्रस्त हों। शत्रुओं का दमन करनेवाला, श्रेष्ठ पुत्रवाला होता है।

– यदि गुलिक सप्तम भाव में है तो जातक/जातिका कलही, लौक द्वैषी, अल्पबुद्धि, क्रोधी, कृतघ्न व अनेक मित्र/उपभार्याएं हो सकती है। – अष्टम भाव का गुलिक छोटा कद, चेहरे व नेत्रों में विकलता या तो शारीरिक कमी हो या वाकशक्ति में कमी हो।

– यदि गुलिक नवें भाव में हो तो धर्म, गुरु, पिता व पुत्रादि से विहीन हो सकता है।

– यदि दशम स्थान में गुलिक स्थित है तो कृपण, अपने बड़ों का अनादर करे व शुभ कार्य त्याग दे।

– यदि एकादश लाभ स्थान में गुलिक है तो जातक/जातिका सुखी, तेजस्वी, कांतिवान हों तथा पुत्र सुख प्राप्ति भी हो।

– द्वादश भाव का गुलिक विषयी, दीन व व्यर्थ का व्यय करने का गुण बढ़ाता है।

गुलिक का अन्य ग्रहों की युति में प्रभाव सूर्य पिता का कारक है यदि सूर्य के साथ गुलिक हो तो पिता को अरिष्ट करे या अल्प पितृ सुख हो या पितृ दोष हो सकता है। चंद्रमा भातृकारक है, यदि चंद्रमा के साथ गुलिक हो तो माता को कष्ट दे। मंगल भ्रातृकारक है अतः मंगल के साथ यदि गुलिक हो तो भाई को कष्ट दे या भाई वियोग भी करा सकता है।

बुध के साथ गुलिक होने से बुद्धि विभ्रम करे। शिरो रोग आदि दे। गुरु धर्म कारक है अतः गुरु के साथ गुलिक होने से पाखंडी हो जाय। शुक्र स्त्रीकारक है अतः गुलिक के साथ शुक्र होने से स्त्री सुख कम होता है। यदि दोनों सप्तम भाव में हों तो ऐसा गुलिक अनेक नीच स्त्रियों के साथ समागम करता है। यदि गुलिक शनि के साथ हो तो व्याधियों का घर बने और अल्पायु हो। यदि गुलिक राहु के साथ हो तो विष रोगी हो या विष से भय हो, सर्प दंश भी हो सकता है।

यदि गुलिक के साथ हो तो अग्नि, बिजली, तेजाब आदि का भय बन सकता है। त्याज्यकाल में गुलिक: यदि गुलिक के त्याज्य काल में जतिका/जातक का जन्म हो तो राजघराने में जन्म लेने वाला भी दरिद्री होता है, भीख मांगकर गुजारा करे। विद्वानों ने त्याज्यकाल का वर्णन निम्न प्रकार से किया है, यथा: नक्षत्र घटी 1. अश्विनी 50.54 2. भरणी 24.28 3. कृत्तिका 30.34 4. रोहिणी 40.44 5. मृगशिरा 14.18 6. आद्र्रा 21.25 7. पुनर्वसु 30.54 8. पुष्य 20.24 9. आश्लेषा 32.36 10. मघा 30.34 11. पूर्वाफाल्गुनी 20.24 12. उत्तराफाल्गुनी 18.22 13. हस्त 21.25 14. चित्रा 20.24 15. स्वाति 14.18 16. विशाखा 14.18 17. अनुराधा 10.14 18. ज्येष्ठा 14.18 19. मूल 56.60 20. पूर्वाषाढ़ा 24.28 21. उत्तराषाढ़ा 20.24 22. श्रवण 10.14 23. धनिष्ठा 10.14 24. शतभिषा 18.22 25. पूर्वाभाद्रपद 16.20 26. उत्तराभाद्रपद 24.28 27. रेवती 30.34 तात्पर्य है कि हर नक्षत्र में केवल 4 घटी का समय गुलिक का ‘त्याज्य काल’ माना गया है।

शास्त्रीय विवेचनानुसार गुलिक को हर भाव में प्रायः हर ग्रह के साथ अशुभ बताया गया है। लेकिन पराशर जी के अनुसार पुस्तकों में आया है कि – गुलिक भवन नाथे केन्द्र गे वा त्रिकोये बलिनि निजगृहस्थे स्वोच्चमित्रस्थिते वा। रथ गज तुरगाणां नायको भारतुल्यो महित पृथुयशास्स्यान्मेदिनी मण्डलेन्द्रः।। अर्थात् जिस घर में गुलिक स्थित है



यदि उस घर का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो, बली हो, अपने घर या अपनी उच्च राशि में हो या मित्र राशि में हो तो जातक/जातिका बहुत सुंदर, यशस्वी और पृथ्वी का स्वामी होता है। इन उपग्रहों का अध्ययन ज्योतिषी को क्यों करना चाहिए ? कृपया ध्यानपूर्वक देखें। मैं ज्योतिष गणित के साथ इन उपग्रहों की उपादेयता बताना चाहता हूं। गुलिक से पिता का विचार:

– स्पष्ट गुलिक में से स्पष्ट सूर्य घटाइए। जो शेष बचे उस राशि या त्रिकोण में गोचरवश जब ‘शनि’ आता है तब पिता को बीमार करता है, या मृत्यु भी कर सकता है।

– स्पष्ट गुलिक में से स्पष्ट सूर्य घटाइए। जो शेष राशि हो उसके नवांश में गोचरवश जब ‘गुरु’ आता है तब पिता की मृत्यु हो सकती है।

– स्पष्ट स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोड़िए, जो राशि आवे उसमें गोचरवश जब ‘गुरु’ आता है तब पिता की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकती है।

– सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोड़िए, जो राशि आवे उसमें गोचरवश जब ‘गुरु’ आता है तब पिता की मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट हो सकता है।

– सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट जोड़िए, जो राशि आवे उसको देखिए कि किस नवांश में है। उस नवांश में गोचरवश जब ‘गुरु’ आता है तब पिता को मृत्यु हो सकती है।

– सूर्य स्पष्ट में यमकण्टक स्पष्ट घटाइए जो लब्धि मिले, उसे दखे कि किस राशि व नवांश में है। उस राशि में या नवमांश में या उससे नवम व पंचम जब गोचरवश जब बृहस्पति आता है तब पिता मृत्यु हो सकती है।

– यमकण्टक में से गुलिक (या मांदी) स्पष्ट घटाइए। जो शेष हो वह जिस राशि व नवांश में हो, जब उस राशि नवांश या नवम पंचम जब गोचर वश ‘शनि’ आता है तब माता की मृत्यु होती है।

– सूर्य स्पष्ट में से चंद्र स्पष्ट घटाइए। शेष लब्धि जिस नवांश में हो, जब गोचर वश ‘गुरु’ उस राशि नवांश मंे आए या उससे नवम-पंचम में आए तो जातक/जातिका के माता-पिता की मृत्यु हो सकती है।

– जन्म नक्षत्र से पांचवें नक्षत्र का स्वामी ग्रह जो हो उसमें से यमकण्टक स्पष्ट घटाइए। जो शेष बचे, उस पर या उससे नम पंचम गोचरवश जब बृहस्पति आता है तब पुत्र की मृत्यु हो सकती है।

– लग्न स्पष्ट, गुलिक स्पष्ट व सूर्य स्पष्ट तीनों को जोड़िए। जो जोड़ प्राप्त हो उसे देखिए कि लब्ध राशि का स्वामी कहां है? जब गोचरवश बृहस्पति उस स्थान में आ जाय या उससे नवम-पंचम हो तब जातक की मृत्यु होती है।

– गुलिक स्पष्ट को नौ से गुणा कीजिए तथा शनि स्पष्ट को भी नौ से गुणा कीजिए। दोनों गुणनफलों को जोड़िए। जो लब्धि आवे उसे देखिए कि किस नवांश में है। जब गोचरवश उस पर शनि आता है तब जातक की मृत्यु बतलायी गयी है।

– लग्न स्पष्ट में से यमकण्टक स्पष्ट घटाइए। लब्धि जिस राशि व नवांश में होगी, गोचरवश जब बृहस्पति उस नवांश पर आता है तो निस्संदेह तब जातक की मृत्यु हो सकती है।

– षष्ठेश, अष्टमेश व द्वादशेश अर्थात् तीनों के ग्रह स्पष्ट जोड़िए। जो राशि आवे उसको नवांश में देखिए। गोचरवश जब शनि उस नवांश पर आवे तब जातक की मृत्यु हो सकती है।

– देखिए कि गुलिक (मान्दी) किस नवांश में है। गोचरवश उस नवांश मेंजब बृहस्पति आवे, पुनः देखिए कि गुलिक किस द्वादशांश में है, गोचरवश उस द्वादशांश पर जब शनि आवे, पुनः देखिए कि गुलिक किस द्रेष्काण में है। उस द्रेष्काण में या उससे नवम पंचम जब सूर्य आवे तब जातक की मृत्यु होती है।