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(कालसर्प दोष विश्लेषण)

काल सर्प योग मुख्यतः बारह प्रकार के होते हैं:–>

अनन्त काल सर्प योग –> यह योग तब बनता है, जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और सरकारी व अदालती मामलों से जुडी परेशानी उठानी पड़ सकती है ।

कुलिक काल सर्प योग –> कुलिक नामक कालसर्प दोष तब बनता है जब राहु द्वितीय भाव में और केतु आठवें घर में होता है। इस योग से पीड़ित व्यक्ति को आर्थिक और सामाजिक तौर पर कष्ट भोगना पड़ता है। साथ ही इनकी पारिवारिक स्थिति भी काफी कलहपूर्ण होती है ।

वासुकि काल सर्प योग –> यह योग तब बनता है जब जन्म कुंडली में राहु तृतीय भाव में और केतु नवम भाव में होता है। वासुकि काल सर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को भाग्य का साथ नहीं मिलता और उनका जीवन संघर्षमय गुज़रता है। साथ ही नौकरी व्यवसाय में भी परेशानी बनी रहती है ।

शंखपाल काल सर्प योग –> राहु कुंडली में चतुर्थ स्थान पर और केतु दशम भाव में हो तब यह योग बनता है। इस कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को आंर्थिक तंगी, मानसिक तनाव, अपनी मां, ज़मीन, परिजनों के मामले में कष्ट भोगना होता है ।

पद्म काल सर्प योग –> यह योग तब बनता है जब राहु पंचम भाव में और केतु एकादश भाव में होता है। पद्म काल सर्प योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना होती है। यौन रोग के कारण व्यक्ति को संतान सुख मिलने में समस्या होती है। इस योग के प्रभाव से धन लाभ में रूकावट, उच्च शिक्षा में बाधा होने की संभावना होती है ।

महापद्म कालसर्प योग–> महापद्म काल सर्प योग में व्यक्ति की कुंडली में राहु छठे भाव में और केतु बारहवें भाव में होता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति को काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है। साथ ही ऐसे लोग प्रेम के मामले में दुर्भाग्यशाली होते हैं ।

कर्कोटक काल सर्प दोष –> आचार्य आनन्द जालान के अनुसार इस योग में केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में होता है। ऐसे जातकों को नौकरी मिलने और पदोन्नति होने में कठिनाइयां आती हैं। समय-समय पर व्यापार में भी क्षति होती रहती है और कठिन परिश्रम के बावजूद उन्हें पूरा लाभ नहीं मिलता ।

तक्षक कालसर्प दोष –> इस योग की स्थिति अनन्त काल सर्प योग से ठीक विपरीत होती है। इसमें केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में। इस योग वाले जातक को वैवाहिक जीवन में अशांति का सामना करना पड़ता है। कारोबार में की गयी किसी प्रकार की साझेदारी फायदेमंद नहीं होती और मानसिक परेशानी देती है ।

शंखचूड़ कालसर्प दोष –> शंखचूड़ काल सर्प योग में केतु तृतीय भाव में और राहु नवम भाव में होता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति जीवन में सुखों नहीं भोग पाता है। ऐसे लोगों को पिता का सुख नहीं मिलता है और इन्हें कारोबार में अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है ।

घातक कालसर्प दोष –> आचार्य आनन्द जालान कुंडली में केतु चतुर्थ भाव में और राहु दशम भाव में होने से घातक काल सर्प योग बनता है। इस योग के प्रभाव से गृहस्थ जीवन में कलह और अशांति बनी रहती है। साथ ही नौकरी और रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है ।

विषधर कालसर्प दोष –> इस योग में केतु पंचम भाव में और राहु एकादश में होता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति को संतान से कष्ट प्राप्त है। ऐसे लोगों को नेत्र एवं हृदय से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनकी स्मरण शक्ति अच्छी नहीं होती है और उच्च शिक्षा में रूकावट आती है ।

शेषनाग कालसर्प दोष –> शेषनाग काल सर्प योग तब आता है जब व्यक्ति की कुंडली में केतु छठे भाव में और राहु बारहवें स्थान पर होता है। इस योग में व्यक्ति को गुप्त शत्रुओं का सामना करना पड़ता है, अदालती मामलो में उलझना पड़ता है मानसिक अशांति और बदनामी का सामना करना पड़ता है ।

धन्यवाद ।